Prepared by | Avnish Pandey |
Date | February 20, 2013 |
अध्यापन व्यवसाय और ज्योतिष
वर्तमान में ारत शिक्षाक्रान्ति के दौर से गुजर रहा है। पिछले सात वर्षों में निजी क्षेत्र के शिक्षण संस्थानों में 100 फीसदी से अधिक बढ़ोŸारी हुई है और यह संख्या लगातार बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। केन्द्र और राज्य सरकारेें ी शिक्षा के विस्तार एवं उसकी गुणवŸाा बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। सरकारी क्षेत्र में ी अब शिक्षकों को अच्छा वेतनमान प्राप्त होने लगा है। यूनिवर्सिटी एवं कॉलेज के शिक्षकों को आठ से बारह लाख रुपए का पैकेज मिलता है। निजी संस्थानों में तो इससे अधिक पैकेज दिए जा रहे हैं। साथ ही, इनसेंटिव के तौर पर आवास एवं वाहन की सुविधा ी मुहैया करवाई जा रही हैं। युवाओं में अध्यापन व्यवसाय के सम्बन्ध में नजरिया बदलने लगा है। अब इसे मजबूरी का कॅरिअर न मानकर प्राथमिकता के आधार पर उत्कृष्ट कॅरिअरों की सूची में रखा जाने लगा है। अध्यापन का पेशा एक ऐसा पेशा है, जो दूसरे पेशों को सिखाता है और सदियों से चुपचाप बिना किसी चकाचौंध के अगली पीढ़ी को तैयार करता आ रहा है। यह न सिर्फ ऊँचे दर्जे का पेशा है, बल्कि इसमें रपूर सम्मान के साथ, अच्छा वेतन और बेहतरी की अनगिनत सम्ावनाएँ हैं। यही एक ऐसा कार्य है, जहाँ सबसे ज्यादा चुनौति मिलती है और उतनी ही संतुष्टि और आराम।
शिक्षक अपने शिष्यों के लिए न केवल सूचना एवं ज्ञान का स्रोत होता है, वरन् वह उनके लिए मार्गदर्शक, सलाहकार एवं रोलमॉडल होता है। इसलिए इस पेशे में सम्मान अपार मिलता है।
अध्यापन व्यवसाय में जाने के लिए जो ग्रह सबसे ज्यादा उŸारदायी है, वह गुरु है। इसके अलावा चन्द्रमा एवं बुध सहायक ग्रहों के रूप में इस व्यवसाय के प्रति व्यक्ति को आकृष्ट करते हैं।
राशिगत आधार पर देखें, तो जन्मकुण्डली में लग्न, पंचम, दशम या एकादश ाव में गुरु या बुध की राशियाँ हों, तो इनके प्रव से जातक अध्यापन व्यवसाय में रुचि रखता है। उसे जब अवसर मिलता है, वह अध्यापक के रूप में कार्य करने लगता है।
अध्यापन में कॅरिअर अपनाने के लिए जो व उŸारदायी हैं, उनमें लग्न, तृतीय, पंचम, दशम एवं एकादश प्रमुख रूप से हैं। जब इन वों एवं वेशों का सम्बन्ध गुरु से होता है, तो जातक अध्यापन अथवा शिक्षा व्यवसाय में जाता है और सफल होता है। षष्ठ वस्थ गुरु अध्यापन या शिक्षण व्यवसाय से जोड़ता है।
दशमेश अथवा दशम व में स्थित ग्रह का नवांशेश यदि गुरु हो, तो ी जातक अध्यापन व्यवसाय को अपनाता है।
कॅरिअर निर्माण के समय यदि गुरु की दशा, अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, तो जातक शिक्षक आदि की प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफल होता है और उसका कॅरिअर अध्यापन होता है।
जातक स्कूल का अध्यापक बनेगा या कॉलेज का प्रोफेसर यह जन्मपत्रिका में बनने वाले राजयोगों और ग्रहों की उच्चादि राशिगत स्थिति पर निर्र करता है। यदि जातक की जन्मपत्रिका में केन्द्रेश एवं त्रिकोणेश के मध्य युति या परस्पर दृष्टि का सम्बन्ध बन रहा हो, तो जातक कॉलेज का शिक्षक बनता है। यदि इस प्रकार के प्रबलराजयोग नहीं हों, तो जातक विद्यालय का शिक्षक बनता है। व्यक्ति किस विषय का शिक्षक होगा? यह लग्न, तृतीय, पंचम, दशम एवं एकादश ाव में स्थित ग्रहों अथवा इन ावों के स्वामियों एवं गुरु से सम्बन्ध बनाने वाले ग्रहों पर मुख्यरूप से निर्र करता है।
यहाँ वििन्न ग्रहों से सम्बन्धित आधुनिक विषयों का उल्लेख किया जा रहा है, जो व्यक्ति के शैक्षिक एवं अध्यापन विषय का निर्धारण करते हैं।
- सूर्य: प्रशासनिक-राजनीतिक विषय (लोकप्रशासन, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, विधिशास्त्र इत्यादि), विष विज्ञान, धातु विज्ञान, औषधिशास्त्र (ङ्गार्मेसी, मेटेरिया मेडिका इत्यादि), विज्ञान, सांख्यिकी, गणित, ौतिक शास्त्र, पैतृक विषय (अर्थात् पिता द्वारा जिन विषयों में पढ़ाई की गई है, उन्हीं का अध्ययन), शस्त्र एवं युद्ध से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन, ूगोल, वनस्पति विज्ञान, पशुचिकित्सा, चिकित्सा विज्ञान (जनरल मेडिसिन, नेत्ररोग चिकित्सा, अस्थिरोग चिकित्सा, न्यूरोलॉजी, आन्तरिक रोग चिकित्सा, हृदयरोग चिकित्सा इत्यादि), कृषि विज्ञान, आूषण एवं रत्न से सम्बन्धित विषय, इंजीनियरिंग (सिविल, विद्युत् इत्यादि), धर्मग्रन्थ, अन्तरिक्ष एवं मौसम विज्ञान, ज्योतिष इत्यादि विषय।
- चन्द्रमा: साहित्य, गृह विज्ञान, कृषि विज्ञान, रसायन विज्ञान, पशुपालन एवं डेयरी विज्ञान, सौन्दर्य शास्त्र, मनोविज्ञान, चिकित्सा विज्ञान (हीमोटोलॉजी, साइकेट्रीक, वक्ष एवं क्षय रोग चिकित्सा से सम्बन्धित विषय, हृदयरोग चिकित्सा, स्त्रीरोग), पर्यटन से सम्बन्धित विषय, माता की शिक्षा से सम्बन्धित विषय, नर्सिंग एवं मिडवाइङ्गरी, मत्स्य पालन, मधुपालन, नौकायन से सम्बन्धित विषय, जलसेना से सम्बन्धित विषय, टेक्सटाइल इंजीनियरिंग, इंटीरियर डेकोरेशन, आर्किटेक्चर, कार्टोग्राङ्गी (नक्शा बनाने का शास्त्र), ङ्गूड प्रोसेसिंग से सम्बन्धित विषय इत्यादि।
- मंगल: गोल, खान एवं खनिज विज्ञान, धातु विज्ञान, रसायन विज्ञान, औषधि विज्ञान, इंजीनियरिंग (मैकेनिकल, ऑटोमोबाइल, कम्प्यूटर हार्डवेयर, विद्युत्, खनिज, सिविल, कृषि, धातु, युद्ध एवं शस्त्र से सम्बन्धित इंजीनियरिंग), चिकित्सा विज्ञान (हीमोटोलॉजी, ङ्गिजियोलॉजी, शल्यचिकित्सा, यूरोलॉजी), पुलिस एवं सेना से सम्बन्धित विषय, अग्निशमन, पेट्रोलियम एवं गैस से सम्बन्धित विषय, ङ्गिजियोथैरेपी, व्यायाम, शारीरिक शिक्षा, विधिशास्त्र (अपराध शास्त्र, दण्ड प्रक्रिया, दण्डसंहिता इत्यादि), आकाश के परीक्षण से सम्बन्धित शास्त्र, ूगर् विज्ञान, ौतिक शास्त्र, पर्वतारोहण एवं अन्य साहसपूर्ण कार्यों से सम्बन्धित विषय इत्यादि।
- बुध: वाणिज्य एवं प्रबन्ध संकाय से सम्बन्धित विषय, अर्थशास्त्र, बैंकिंग, सांख्यिकी, गणित, ज्योतिष, पत्रकारिता, प्रकाशन से सम्बन्धित विषय, पुस्तकालय विज्ञान, करों से सम्बन्धित विषय, राजनयिक विषय, वेद, शिक्षा शास्त्र, चिकित्सा विज्ञान (त्वचा, ङ्गेङ्गड़े, श्वसन तन्त्र, अस्पताल प्रबन्धन), धातु विज्ञान, मार्केटिंग से सम्बन्धित विषय, ङ्गाइनेंस से सम्बन्धित विषय, साहित्य, वेदान्त, ाषा एवं व्याकरण, पुराण, इतिहास, कर्मकाण्ड, मन्त्र-तन्त्र-यन्त्र इत्यादि।
- गुरु: शिक्षाशास्त्र, ज्योतिष, धर्मशास्त्र एवं पौरोहित्य, वेद, स्मृति, विधिशास्त्र, दर्शन, तर्कशास्त्र, वेदान्त, चिकित्सा विज्ञान (उदर रोग, जनरल मेडिसिन आदि), ाषा एवं व्याकरण, गणित, समाजशास्त्र इत्यादि।
- शुक्र: कला संकाय के विषय, ललित कला संकाय के विषय, नृत्य, संगीत एवं नाट्याशास्त्र, साहित्य, होटल मैनेजमेंट, चिकित्सा विज्ञान (स्त्री रोग चिकित्सा, प्रसूति चिकित्सा, अन्तःस्रावी ग्रन्थियों से सम्बन्धित चिकित्सा, जननांगों से सम्बन्धित चिकित्सा, उदर रोग चिकित्सा इत्यादि), ङ्गिल्म एवं टेलीविजन उद्योग से सम्बन्धित विषय, कम्प्यूटर एनिमेशन, इंटीरियर डेकोरेशन, गृह विज्ञान, ङ्गैशन डिजाइनिंग, ब्यूटीशियन, पाक कला से सम्बन्धित विषय, ङ्गूड प्रोसेसिंग, टेक्सटाइल डिजाइनिंग, आर्किटेक्चर, शिल्पकला, मीनाकारी, हैण्डीक्राफ्ट, ट्याूरिज्म, ङ्गोटोग्राङ्गी, कम्प्यूटर डिजाइनिंग, वेब डिजाइनिंग इत्यादि।
- शनि: कला संकाय से सम्बन्धित विषय (इतिहास, पुरातŸव, पुराण, दर्शन, स्मृति, विदेशी ाषाएँ, एन्थ्रोपोलॉजी, समाजशास्त्र, परामनोविज्ञान, ूगोल इत्यादि), विज्ञान संकाय से सम्बन्धित विषय, इंजीनियरिंग (सिविल, मैकेनिकल, ूगर् विज्ञान, बायोटेक्नोलॉजी, पेट्रोलियम, खान एवं खनिज, धातु विज्ञान, कृषि विज्ञान, डेयरी, ङ्गूड प्रोसेसिंग, कम्प्यूटर हार्डवेयर, ऑटोमोबाइल, एयरोनॉटिकल इत्यादि), प्रबन्धन (मानव संसाधन विकास, अस्पताल, चर्म एवं जूता मार्केटिंग, रिटेलिंग आदि), चिकित्सा विज्ञान (अस्थिरोग चिकित्सा, कैंसर, आन्तरिक रोग, उदर रोग, बैक्टिरियोलॉजी, पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, निश्चेतन, न्यूरोलॉजी इत्यादि), पशुचिकित्सा, ज्योतिष, धर्मशास्त्र, तन्त्र-मन्त्र-यन्त्र, कर्मकाण्ड, विधिशास्त्र, अनुसंधान इत्यादि।
- राहु: कला संकाय से सम्बन्धित विषय (इतिहास, पुरातŸव, दर्शन, एन्थ्रोपोलॉजी, मनोविज्ञान इत्यादि), विज्ञान संकाय से सम्बन्धित विषय (जीव विज्ञान, विष विज्ञान, प्राणी विज्ञान, विषाणु विज्ञान, रेडियोलॉजी, जीवाणु विज्ञान, आणविक विज्ञान, दूरसंचार विज्ञान, कम्प्यूटर इत्यादि), चिकित्सा विज्ञान (कैंसर, विषाणु विज्ञान, निश्चेतन, विष विज्ञान, रेबीज रोग से सम्बन्धित चिकित्सा, महामारियों की चिकित्सा, मनोरोग, रेडियोलॉजी इत्यादि), इंजीनियरिंग (कम्यूनिकेशन, कम्प्यूटर, एयरोनोटिकल, बायोटेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रॉनिक्स इत्यादि), ज्योतिष, धर्मशास्त्र, तन्त्र-मन्त्र, जादू-टोना, परामनोविज्ञान, रहस्यमय एवं प्राचीन विद्याएँ इत्यादि।
- केतु: कला संकाय से सम्बन्धित विषय (दर्शन, तर्कशास्त्र, ाषा एवं व्याकरण इत्यादि), विज्ञान संकाय से सम्बन्धित विषय (ौतिक शास्त्र, रासायन शास्त्र, दूर संचार विज्ञान, कम्प्यूटर, आणविक विज्ञान, मौसम विज्ञान इत्यादि), चिकित्सा विज्ञान (कैंसर, विषाणु विज्ञान, निश्चेतन, रेडियालॉजी इत्यादि), इंजीनियरिंग (इलेक्ट्रॉनिक्स, कम्प्यूटर, कम्यूनिकेशन इत्यादि), रहस्यमय एवं प्राचीन विद्याएँ, धर्मशास्त्र, अध्यात्म इत्यादि।
कई बार कॅरिअर निर्माण के समय शिक्षण व्यवसाय में जाने योग्य दशाओं के अभाव में जातक दूसरे व्यवसायों की ओर उन्मुख हो जाता है, परन्तु उसकी अभारुचि सदैव अध्यापन व्यवसाय की ओर होती है। जब उसे अवसर मिलता है, वह इस व्यवसाय की ओर प्रवति देखे हैं, जिनमें जातक ने अन्य क्षेत्रों में सेवानिवृŸिा के उपरान्त अध्यापन व्यवसाय को अपनाया। यहाँ कतिपय उदाहरण दिए जा रहे हैं, जिनके माध्यम से अध्यापन व्यवसाय में जाने के योगों को समझा जा सकेगा।
उदाहरण 1: ईश्वरचन्द्र विद्यासागर
जन्म दिनांक: 26 सितम्बर, 1820
जन्म समय: 12ः30 बजे
जन्म स्थान: वीरसिंह, घाटल (बंगाल)
जन्मकुण्डली
उपर्युक्त जन्मपत्रिका प्रसिद्ध विद्वान्, शिक्षाविद्, समाजसुधारक एवं स्वतन्त्रता सेनानी ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की है। उन्होंने 1841 ई. में फोर्ट विलियम कॉलेज में संस्कृत शिक्षक के रूप में अपने कॅरिअर का आरम्भ किया था। वे 1851 ई. में संस्कृत कॉलेज के पिं्रसीपल बन गए थे। शिक्षा सुधार एवं संस्कृत और बंगाली शिक्षा के लिए उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया है। जन्मपत्रिका में लग्न में गुरु की धनु राशि है। तृतीय भाव में लग्नेश गुरु स्थित है और उसकी दृष्टि एकादश भाव पर है। कॅरिअर निर्माण के समय राहु महादशा में गुरु की अन्तर्दशा थी। महादशानाथ राहु गुरु की राशि कन्या में स्थित है और निरयण भाव चलित में तृतीय भाव में राहु, गुरु एवं शनि की युति हो रही है। गुरु के कारण वे प्रमुख शिक्षाशास्त्री एवं संस्कृत भाषा और व्याकरण के विद्वान् बने तथा इसी विषय में उन्होंने अध्यापन एवं लेखन का कार्य किया। शनि के प्रभाव से उन्होंने विधिशास्त्र में अध्ययन किया। शनि और राहु धर्मशास्त्र, इतिहास आदि प्राचीन विद्याओं की ओर लेकर जाते हैं।
उदाहरण 2: डॉ. राधाकृष्णन
जन्म दिनांक: 05 सितम्बर, 1888
जन्म समय: 07ः00 बजे
जन्म स्थान: तिरुŸाानी (तमिलनाडु)
उपर्युक्त जन्मपत्रिका प्रख्यात शिक्षाविद् एवं दर्शनशास्त्री डॉ. राधाकृष्णन की है। उनकी जन्मपत्रिका में लग्न में बुध की राशि है और लग्नेश बुध वहाँ स्थित है। शुक्र यद्यपि नीच राशि में है, परन्तु उसका नीच भाग हो रहा है। तृतीय भाव में गुरु मंगल की युति है, जो उन्हें शिक्षाक्षेत्र में प्रसिद्धि दिला रही है।
गुरु मंगल से युत होकर एकादश भाव में स्थित पंचमेश शनि पर पूर्ण दृष्टि डाल रहा है, वहीं शनि राहु से युत होकर अपने भाव पंचम को स्वराशिगत दृष्टि से देख रहा है। इन सबके प्रभाव से डॉ. राधाकृष्णन ने दर्शन में शिक्षा प्राप्त की और उसी विषय में प्रोफेसर बने।
डॉ. राधाकृष्णन ने शुक्र में गुरु की अन्तर्दशा में तथा शुक्र में शनि की अन्तर्दशा में कॉलेज की शिक्षा ग्रहण की। शुक्र में बुध की अन्तर्दशा में उन्हें सन् 1909 में मद्रास प्रेसीडेन्सी कॉलेज में दर्शन के प्राध्यापक के रूप में नौकरी मिली। जन्मकुण्डली में शुक्र भाग्येश होकर लग्न में कर्मेश एवं लग्नेश बुध के साथ युति सम्बन्ध बनाकर श्रेष्ठ राजयोग का निर्माण कर रहा है। बुध उच्चराशिगत है। इसी श्रेष्ठ राजयोग के कारण डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को शिक्षा जगत् में अकूत प्रसिद्धि मिली और उन्होंने इस क्षेत्र में अपार सफलता अर्जित की। सन् 1918 में चन्द्रमा की महादशा में उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर का पद अर्जित हुआ। सन् 1931 में जब वे मंगल में शनि की अन्तर्दशा के प्राव में थे, तब आन्ध्र विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने। वे इस पद पर सन् 1936 तक रहे। सन् 1936 से 1948 तक वे बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने।
उदाहरण 3: भूगोल शिक्षक
जन्म दिनांक: 12 मार्च, 1932
जन्म समय: 09ः00 बजे
जन्म स्थान: कोटा (राजस्थान)
जन्मकुण्डली
उपर्युक्त जन्मपत्रिका विद्यालयी शिक्षा में व्याख्याता रहे जातक की है। जन्मपत्रिका में गुरु चतुर्थ भाव में उच्चराशि का होकर हंस नामक पंचमहापुरुष योग का निर्माण कर रहा है, वहीं शनि दशम भाव में स्वराशि का होकर शश नामक पंचमहापुरुष योग का निर्माण कर रहा है। चतुर्थ भाव में गुरु दशम भाव को अपनी पूर्ण दृष्टि से देख रहा है, जिसके कारण जातक ने शिक्षा के क्षेत्र में कॅरिअर अपनाया। पंचमेश सूर्य की मंगल से युति है और दशम भाव में शनि स्थित है, जो गुरु को पूर्णदृष्टि से देख रहा है। इन योगों के कारण जातक भूगोल के व्याख्याता बने। ग्येश गुरु एवं कर्मेश शनि के मध्य परस्पर दृष्टि सम्बन्ध होने के कारण जातक अपनी नौकरी में प्रसिद्ध रहे और शिक्षा विभाग की प्रशासनिक सेवाओं में नियुक्त हुए। साथ ही, राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पेपर सेटर, पाठ्याक्रम निर्धारण समिति के सदस्य तथा पुस्तकों के रचयिता रहे।